*लम्हे फुर्सत के आएं तो, रंजिशें भुला देना दोस्तों,*

*किसी को नहीं खबर कि सांसों  की मोहलत कहाँ तक है ॥* 💕
❣❣ *दुआ हैं हमारी.......*  

*जिन्दगी में हर रोज वो चहेरां मुस्कुराता मिले...*

*जिस चहेरे को आप रोज आइने में देखते हो...!!*🦋❣❣😊

जरा सी बात से मतलब बदल जाते हैं,
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उंगली उठे तो बेइज्जती👉🏼
और अंगूठा उठे तो तारीफ 👍🏻
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अंगुठे से उंगुली मिले तो लाजबाब 👌🏻
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शुभप्रभात 🙏

*"झूठी" बात पे जो "वाह" करेंगे..*

*"वही" लोग आपको " तबाह" करेंगे*...

बहुत छाले हैं 
उसके पैरों में...

वो ज़रूर 
उसूलों पर चला होगा......
🌹🌸  🌹🌸

बिना मक़सद सुनाई थी मैंने,कहानी मेरे ज़ज्बात की,
हर शख़्स सुनता रह गया, बस आपबीती सोचकर !!
अच्छी लगने लगी हैं ये खामोशियाँ भी अब हमें..

किसी को जवाब देने का सिलसिला जो खत्म हो गया..
गुमान था कि कोई दुश्मन जान नहीं ले सकता...

अपनों के वार का तो ख्याल तक ना था...!!
"सफलता" भी फिकी लगती है अगर कोई बधाई देनेवाला ना हो,
और
"विफलता" भी सुदंर लगती है जब कोई अपना आपके साथ खडा हो....
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शुभप्रभात 🙏

दिल के मंदिरों में कहीं बंदगी नहीं करते,…

पत्थर की इमारतों में खुदा ढूंढ़ते हैं लोग...
🌹सुप्रभात🌹

**
ज़िन्दगी, बस इतना अगर दे दो तो काफी है,

सिर से चादर ना हटे, पाँव भी चादर में रहें,, ,,**

जो लम्हा साथ है उसे जी भर के जी लेना..
•°"कम्बख्त" ये "जिंदगी"
भरोसे" के काबिल नहीं है.!!!
💗💗💞💘💞💗💗
🌹सुप्रभात🌹

मैं अगरबत्ती की तरह हमेशा "खुशबू" ही दूंगा..,

तू चाहे "शौक़" से कितना भी "जला" ले मुझको..!!

दलीलें 'झूठ' की ही होती है...

'सच' खुद अपना वकील होता है...!"


बहुत थे मेरे भी इस दुनिया में अपने ,

फिर हुआ सच बोलने का नशा
और
हम लावारिस हो गए......!!!

*किसी ने पूछा इस दुनिया में आपका अपना कौन हैं..,*

मैंने हंसकर कहा-- *समय!!*

*अगर वो सही, तो सभी अपने, वरना कोई नहीं...........*

🙏

खुशियाँ उतनी ही
अच्छी…जितनी मुट्ठियों मे समा जाए.
छलकती ,बिखरती खुशियो को ..अक्सर नजर लग
जाया करती है!

कभी फुर्सत मिलेगी तो सोचेंगे आराम से "मयूर",

ये जो जल्द जल्द में कट गई वो जिंदगी थी क्या....

आइना सोच में है के कौन सा मंज़र देखूं,

तुझको देखूं या तेरे हाथ का पत्थर देखूं...

पांवों के लड़खड़ाने पे तो सबकी है नज़र,

सर पे कितना बोझ है कोई देखता नहीं।

*लोगों ने कई कोशिश की मुझे मिट्टी में दबाने की...,*

*लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि ‘‘मैं बीज हूँ"...*
*आदत है मेरी बार-बार उग जाने की...*

हमको नहीं कु़बूल किसी तौर भी रकी़ब~~,

नफ़रत भी किजिये तो फ़क़त हमसे किजिये

आदत थी मेरी सबसे हँस के बोलना,

मेरा शौक ही मुझे बदनाम कर गया...
** मंदिर की सीढ़ियों पे , 
    खड़ी थी मैं उसके ख्याल में,,,

    वो दीप बन के जल उठा  
     मेरी पूजा की थाल में ,,,**

ये राहें ले जायेंगी मंज़िल तक.... हौसला रख ए मुसाफ़िर.... कभी सुना है क्या.... अंधेरे ने सवेरा होने ना दिया.....