मैं अपने राझ-ए-हयात ज़माने से छुपाऊँ कैसे,

काँच  के  हैं अरमाँ  टूटने से बचाऊँ  कैसे

ये राहें ले जायेंगी मंज़िल तक.... हौसला रख ए मुसाफ़िर.... कभी सुना है क्या.... अंधेरे ने सवेरा होने ना दिया.....