अब ये तो मत पूछिये की क्यों इतना भीगा-भीगा सा लिखती हूँ ,

हमें मालूम है की ये कागज़ हैं..कभी निचोड़े नहीं जाते हैं....!

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ये राहें ले जायेंगी मंज़िल तक.... हौसला रख ए मुसाफ़िर.... कभी सुना है क्या.... अंधेरे ने सवेरा होने ना दिया.....