*कुछ ख़त आज फिर डाकघर से लौट आये...* 

*डाकिया बोला जज्बातों का कोई पता नहीं होता...*

No comments:

Post a Comment

ये राहें ले जायेंगी मंज़िल तक.... हौसला रख ए मुसाफ़िर.... कभी सुना है क्या.... अंधेरे ने सवेरा होने ना दिया.....