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चर्चा हमारा इश्क़ ने क्यूँ जा-ब-जा किया.......
दिल उस को दे दिया तो भला क्या बुरा किया......
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा..📝
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Na dil mein basakar bhulaya karte hain,
Na hasakar rulaya karte hain,
Kabhi mehsoos kar ke dekh lena,
Hum jaise toh dil se rishte nibhaya karte hai.......... ✍🏻Alifiya✍🏻
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ए कुदरत तुझे हिसाब किताब करना नहीं आता।
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कुछ खेल नहीं है इश्क़ करना,
ये ज़िंदगी भर का रत-जगा है।
अहमद नदीम क़ासमी.......📝
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हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते
हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं
हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं
मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर
फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा!
munavvar rana
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थाम लो मुझे ,आंखों में बेहोशी छा रही है
पलको में आंसू ले कर तेरी याद आ रही है
प्यार तो बे पनहा मेरे दिल ने तुमसे किया है हमदम
फिर सजा क्यों मेरी नजरे पा रही है .....✍🏻 Alifiya
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फूल खिल कर उदास है,
सागर को आज पानी की प्यास है,
एक बार आप भी मुस्कुरा दो,
क्योंकि खुदा को दुनिया की सबसे अच्छी हसी की तलाश है.
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नज़र ने नज़र से मुलाक़ात कर ली,
रहे दोनों खामोश पर बात कर ली !
मोहब्बत की फिजां को जब खुश पाया,
इन आंखों ने रो रो के बरसात कर ली !!🌧
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ईश्क भरी भोर के मद से हटाले पर्दा तकल्लूफ के कोहरे का
साकी बेपर्दा होकर पीने दे ज़ाम सुबह के महकते ईश्क का
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क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़,
जान का रोग है बला है इश्क़।
मीर तक़ी मीर.........📝
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उन से हम लौ लगाए बैठे हैं,
आग दिल में दबाए बैठे हैं।
अनवर देहलवी..............📝
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पी है शराब हर गली की दुकान से,
दोस्ती सी हो गयी है शराब की जाम से !
गुज़रे हैं हम कुछ ऐसे मुकाम से,
की आँखें भर आती है मोहब्बत के नाम से..!!
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उस मरज़ को मरज़-ए-इश्क़ कहा करते हैं,
न दवा होती है जिस की न दुआ होती है।
शफ़ीक़ रिज़वी.............📝
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एक बौछार के जैसे
तुम्हारा आना
बिना बरसे किसी अब्र की सहमी सी नमी से जो भिगो देते हो मुझे___!!
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थोड़ा सुकून भी ढूँढिए
यारो ,.........................
ये जरूरतें तो कभी
खत्म न होगी !! ..........
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*खुदा ने बङे अजीब से दिल के रिश्ते बनायें हैं.*
*सबसे ज्यादा वही रोया जिसने ईमानदारी से निभाये है|*
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