मोहब्बत का खेल तो शतरंज से भी मज़ेदार निकला
में हारा भी तो अपनी ही रानी से.
*गुलाब ऎसे ही*
*थोड़े गुलाब होता है*
*ये अदा काँटों में*
*पलने के बाद आती है* 🌹
इंतजारों के कांटों को मैं चुनता चला गया
पल पल गिरे आंसू को गिनता चला गया
रिश्तों ने हर कदम पर मुझको बहुत टोका
मगर मैं तेरी बात को बस सुनता चला गया
अब तुम ही खफा हो तो बताओ क्या करूं
तेरा जवाब न मिला तो सिर धुनता चला गया
कुछ दिन में शायद सबकुछ ठीक हो जाए
इसी उम्मीद में ये गजल मैं बुनता चला गया
खत्म हो तो कुछ ऐसे खत्म हो...
कि लोग रोने लगे..तालियाँ बजाते बजाते ।
मुझको यक़ीं है सच कहती थीं, जो भी अम्मी कहती थीं,
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं।
-----
एक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया,
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं।
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एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी-रूठी लगती हैं,
एक वो दिन जब ‘आओ खेलें’ सारी गलियाँ कहती थीं।
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एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं,
एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझल रहती थीं।
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एक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी की बातें हैं,
एक वो दिन जब दिल में भोली-भाली बातें रहती थीं।
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एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का,
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं।
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एक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामाँ रहता है,
एक वो घर जिस घर में मेरी बूढ़ी नानी रहती थी
.तुम करवट न बदलना ख्वाब़ो मे ।💕 💕
बमुश्किल नीद लगी हे आँखो मे ।
💕 💕
💕💕तेरी मर्जी से ढल जाऊं हर बार ये मुमकिन नहीं ,
मेरा भी वजूद है, ........मैं कोई आइना नहीं........!!!💕💕
शतरंज खेलते रहे वो हमसे कुछ इस कदर;
कभी उनका इश्क़ मात देता तो कभी उनके लफ्ज़।
*नाम और पहचान*
*भले ही छोटी हो;*
*मगर खुद की होनी चाहिए।*
तेरी चूड़ियों की वो खनक
यादों की कमरें में गूंजे हैं..।। ❤
ज़िंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा...
जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते…
मेराज फ़ैज़ाबादी
Behad pasandida Sher :)
Zinda rahna hai to halaat se darna kaisa...
Jang lazim ho to Lashkar nahin dekhe jate....
Meraj Faizabadi
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका;
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया 💝
में हारा भी तो अपनी ही रानी से.
*गुलाब ऎसे ही*
*थोड़े गुलाब होता है*
*ये अदा काँटों में*
*पलने के बाद आती है* 🌹
इंतजारों के कांटों को मैं चुनता चला गया
पल पल गिरे आंसू को गिनता चला गया
रिश्तों ने हर कदम पर मुझको बहुत टोका
मगर मैं तेरी बात को बस सुनता चला गया
अब तुम ही खफा हो तो बताओ क्या करूं
तेरा जवाब न मिला तो सिर धुनता चला गया
कुछ दिन में शायद सबकुछ ठीक हो जाए
इसी उम्मीद में ये गजल मैं बुनता चला गया
खत्म हो तो कुछ ऐसे खत्म हो...
कि लोग रोने लगे..तालियाँ बजाते बजाते ।
मुझको यक़ीं है सच कहती थीं, जो भी अम्मी कहती थीं,
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं।
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एक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया,
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं।
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एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी-रूठी लगती हैं,
एक वो दिन जब ‘आओ खेलें’ सारी गलियाँ कहती थीं।
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एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं,
एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझल रहती थीं।
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एक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी की बातें हैं,
एक वो दिन जब दिल में भोली-भाली बातें रहती थीं।
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एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का,
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं।
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एक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामाँ रहता है,
एक वो घर जिस घर में मेरी बूढ़ी नानी रहती थी
.तुम करवट न बदलना ख्वाब़ो मे ।💕 💕
बमुश्किल नीद लगी हे आँखो मे ।
💕 💕
💕💕तेरी मर्जी से ढल जाऊं हर बार ये मुमकिन नहीं ,
मेरा भी वजूद है, ........मैं कोई आइना नहीं........!!!💕💕
शतरंज खेलते रहे वो हमसे कुछ इस कदर;
कभी उनका इश्क़ मात देता तो कभी उनके लफ्ज़।
*नाम और पहचान*
*भले ही छोटी हो;*
*मगर खुद की होनी चाहिए।*
तेरी चूड़ियों की वो खनक
यादों की कमरें में गूंजे हैं..।। ❤
ज़िंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा...
जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते…
मेराज फ़ैज़ाबादी
Behad pasandida Sher :)
Zinda rahna hai to halaat se darna kaisa...
Jang lazim ho to Lashkar nahin dekhe jate....
Meraj Faizabadi
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका;
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया 💝
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