ना जाने कितना कुछ...कहती हैं तुमसे खामोशियां ये मेरी ! 

और शिकवा तुम्हें यही है...कि हम बोलते नहीं !!

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ये राहें ले जायेंगी मंज़िल तक.... हौसला रख ए मुसाफ़िर.... कभी सुना है क्या.... अंधेरे ने सवेरा होने ना दिया.....