फिर ख़्वाहिशों को कोई सराए न मिल सकी,


इक और रात ख़ुद में ठहरना पड़ा मुझे!

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ये राहें ले जायेंगी मंज़िल तक.... हौसला रख ए मुसाफ़िर.... कभी सुना है क्या.... अंधेरे ने सवेरा होने ना दिया.....